बजारे , तेरी बाँसरी !
( तर्ज : आजारे परदेशी ... )
बजारे तेरी बाँसरी !
मैं तो कभि कि हूँ कान लगाय !!
मेरी ये अरमा को
कर दे पुरी || टेक ||
कई सखी बन में पागल
बनके
घूम रही नाचे मन - मन के ॥
किसने है ये जादु भरी ।
तेरी बाँसरी ।।१ ।।
ये देखो ग्वालन के बाला ।
मस्त भये गाते गोपाला ॥
तन - मन - जनकी सूध हरी ।
तेरी बाँसरी ...॥ २ ।।
गैय्या भी चरती , झुमती हैं ।
कान लगाकर घुम घुमती हैं ।
तुकड्या कहे , सुध ले हमरी ।
तेरी बाँसरी ...॥ ३ ॥
हनुमान गढ़ी , अयोध्या ,
दि . १३-८-६२
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